लेख-निबंध >> छोटे छोटे दुःख छोटे छोटे दुःखतसलीमा नसरीन
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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....
कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
(1)
इस देश के एक लेखक को, पड़ोसी बड़े देश की तरफ से वेहद सम्मानजनक पुरस्कार मिला है! पुरस्कार की खवर छपते ही, देश के ही किसी अखबार में लेखक की पुरस्कृत किताब के विरुद्ध काफी गंदी और निंदनीय समीक्षा छपी है। उस किताब की काफी बदनामी की गई है! सबसे ज़्यादा अचरज की बात है कि पुरस्कार पाने से पहले-पहले ही, उस निंदा की हज़ारों-हज़ारों फोटो-प्रतियाँ पड़ोसी देश के अखवार के दफ्तरों में भेजी गई हैं कि वे लोग इसे अपने अखबार में छाप दें और वह पुरस्कार, इस देश के लेखक को नसीब न हो। पुरस्कार देने वाले ताज्जुब में पड़ गए थे। पुरस्कार अपने देश में आने वाला है। यह भी इंसान से बर्दाश्त नहीं होता?
इससे भी ज़्यादा मज़ेदार बात यह है कि पड़ोसी देश जब उस देश के लेखक के लेखन की तारीफ में पंचमुख है, तभी इस देश से उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में अशोभन किस्से-कहानी गढ़कर, मुद्दे की बात यह है कि उसके चरित्र हनन की एक छोटी-सी किताब छापकर, बगल के देश में भेजा गया। ताकि वे लोग लेखक की प्रशंसा करने के बजाय, वह पतली-सी किताब, ध्यान से पढ़ें और वे लोग भी उसकी निंदा शुरू कर दें तभी इस देश के बंगालियों को खुशी होगी। पड़ोसी देश के अखबार के दफ्तर से लेकर फुटपाथ तक, व्यक्तिगत चरित्र-हनन की वह संक्षिप्त सी किताब, बिल्कुल मुफ्त वाँटी जा रही है क्योंकि देशी निंदक लेखक के चरित्र हनन की वह पतली-सी किताब वहाँ बिना मूल्य ही बाँट रहे हैं। उस पार कहीं यह लेखक सम्मानित न हो जाए, इस खौफ से इन बेचारों को अपनी गाँठ से पैसे खर्च करने में भी कोई एतराज नहीं है।
खून में योसिनोफिल नामक एक चीज़ मौजूद है। इसकी मात्रा अगर बढ़ जाए, तो बदन में खुजली मच जाती है! लगता है, अधिकांश बंगालियों में योसिनोफिल ही कुछ ज़्यादा मात्रा में किलबिल करता है, तभी किसी की तरक्की देखकर उसके मन में खुजली मच जाती है! अच्छा, उस बंगाली केंकड़े की कहानी तो सभी जानते हैं न? वह जो कहानी है न-चंद केंकड़े किसी गंदे-से पीपे में गिर पड़े। केंकड़े अगर चाहते, तो उस खुले पीपे से बाहर भी आ सकते थे। लेकिन उनमें से एक भी बाहर नहीं निकला। यह देखकर किसी ने सवाल किया- 'यह कैसी बात है? वे लोग ऊपर क्यों नहीं आ रहे हैं?' उसके बाद, जाँच की गई, तो उनमें से कोई एक भी केंकड़ा अगर ऊपर आने की कोशिश करता, तो बाकी सब केंकड़े उसे नीचे खींच लेते थे। नतीजा यह हुआ कि उनमें से कोई भी केंकड़ा ऊपर नहीं आ सका। यह हालत देखकर, वहाँ मौजूद लोगों ने यह राय बनाई कि यह जरूर बंगाली केंकड़ा है, क्योंकि दुनिया में एक बंगाली के अलावा और कोई भी जात ऐसी नहीं है, जो खुद भी तरक्की नहीं करती और अगर कोई दूसरा तरक्की करता है, तो उसे कमर से पकड़कर खींच लते हैं।
इस देश के लेखक, इसी देश की धूल-मिट्टी के बने इंसान हैं। उनकी कलम भी इसी देश के लोगों की भलाई करने के इरादे से चलती है। इसी देश की समाज-व्यवस्था को बदलने के लिए वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वे जोखिम भी ले रहे हैं। विदेशों में उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें लिखी जा रही हैं। वे सब अच्छी-अच्छी बातें पढ़कर इस देश के लेखक,पत्रकार और कई-कई सांप्रदायिक और संकीर्णमना बुद्धिजीवी आतंकित हो उठे हैं। और-और देशों में जब तारीफें छपती हैं, वे लोग इसके पीछे राजनीतिक षड्यंत्र तलाश करने लगते हैं और जब कोई निंदा छपती है तब बड़े उत्साह से उसका पुनर्मुद्रण करके, इस देश के अखबार में छाप देते हैं। पड़ोस के देश में अगर कोई निंदा होती है, तो ये लोग खुशी से गद्गद हो उठते हैं। अगर उनका वश चले, तो मिलाद की महफिल ही सजा डालें।
(2)
चुनाव से पहले बी. एन. पी. ने आवाज़ उठाई थी कि हसीना को भारत ने पाँच सो करोड़ रुपए दिए हैं। अवामी लीग ने भी कहा था कि खालिदा को पाकिस्तान से छः सौ करोड़ रुपए दिए गए हैं। लेकिन इतने रुपयों की लेन-देन कोई साबित नहीं कर पाया। इसी तरह 'लज्जा' नामक उपन्यास लिखने के लिए बी. जे. पी. ने इस लेखक को पैंतालीस लाख रुपए थमाए हैं-जो लोग इसका प्रचार कर रहे हैं, इसकी सच्चाई को बूंद भर भी साबित नहीं कर सकेंगे। लेकिन सवाल यह है कि वे लोग ऐसा कु-प्रचार क्यों करते हैं? उन लोगों ने क्या काँग्रेस से रुपए खाए हैं? या सी. पी. एम. से?
(3)
रहमान जहाँगीर नामक एक पत्रकार कुछ दिनों से, मेरे एक इंटरव्यू के लिए, मुझसे काफी आरजू मिन्नत कर रहे थे। वे दिल्ली के किसी स्वतंत्र अखबार के लिए मेरा इंटरव्यू चाहते थे। बंगलादेश में वे 'टेलीग्राफ' अखबार में नौकरी करते हैं। अखबार का नाम सुनकर मेरे समूचे तन-बदन में झुरझुरी फैल गई। जब मैंने उन्हें इंटरव्यू देने के लिए मना कर दिया, यह जानने के बाद उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर देकर कहा कि यह साक्षात्कार वे दिल्ली के किसी अखबार के लिए चाहते हैं। वह अखबार, मेरा इंटरव्यू लेने के लिए बार-बार उन्हें टेलेक्स भेज रहा है।
आखिरकार मैं राजी हो गई। कुछ देर हम बातचीत करते रहे। उन्होंने मेरी बातचीत नोट की और चले गए।
इस घटना के कई दिनों वाद, मेरे किसी शुभाकांक्षी ने कहा, “हेरत है! तुमने इंकलाव ग्रुप के अखबार में इंटरव्यू दिया है?'
'नहीं तो!' मैं मानों आसमान से गिरी।
'लेकिन, टेलीग्राफ में तुम्हारा इंटरव्यू छपा है!'
यह रहस्य मुझे काफी बाद में समझ में आया। रहमान जहाँगीर नामक इस अधेड़ पत्रकार ने मुझसे मक्कारी की। उन्होंने दिल्ली के किसी अखबार के लिए इंटरव्यू लेकर उसे अपने कट्टरवादी अखबार में, बिना मेरी अनुमति के छाप दिया। वे अच्छी तरह जानते थे कि मौलाना मन्नान के अखबार में मैं कोई इंटरव्यू नहीं दूंगी। इसलिए इस धोखेबाज़ी का सहारा लिया गया। यह शख्स, एक तरफ बेईमान और झूठा पत्रकार है, दूसरी तरफ उतना है विकृत यौन विशेषज्ञ भी है। मेरे छोटे-छोटे बाल, पोशाक, विवाह और विवाह-विच्छेद को लेकर, उन्होंने अशोभन मंतव्य दिए हैं, यह सब देखकर मुझे यही लगा है! इन लोगों ने मानों अपनी पक्की राय बना ली है कि औरत का मतलब है, घने काले-लंबे बाल और साड़ी में शोभित सजी-धजी कोई शर्मीली-सी
औरत! अगर इस नक्शे से बाहर कोई लड़की नज़र आई, इन लोगों की आँखें मानो फटी पड़ती हैं, कानों में गर्म हवाएँ बहने लगती हैं, सर घूम जाता है और हित अनहित का होश गँवा बैठते हैं।
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- आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
- मर्द का लीला-खेल
- सेवक की अपूर्व सेवा
- मुनीर, खूकू और अन्यान्य
- केबिन क्रू के बारे में
- तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
- उत्तराधिकार-1
- उत्तराधिकार-2
- अधिकार-अनधिकार
- औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
- मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
- कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
- इंतज़ार
- यह कैसा बंधन?
- औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
- बलात्कार की सजा उम्र-कैद
- जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
- औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
- कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
- आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
- फतवाबाज़ों का गिरोह
- विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
- इधर-उधर की बात
- यह देश गुलाम आयम का देश है
- धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
- औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
- सतीत्व पर पहरा
- मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
- अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
- एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
- विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
- इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
- फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
- फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
- कंजेनिटल एनोमॅली
- समालोचना के आमने-सामने
- लज्जा और अन्यान्य
- अवज्ञा
- थोड़ा-बहुत
- मेरी दुखियारी वर्णमाला
- मनी, मिसाइल, मीडिया
- मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
- संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
- कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
- सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
- 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
- मिचलाहट
- मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
- यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
- मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
- पश्चिम का प्रेम
- पूर्व का प्रेम
- पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
- और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
- जिसका खो गया सारा घर-द्वार